Yusuf

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औरत ही औरत की दुश्मन होती हैं।


* औरत ही औरत की दुश्मन होती हैं*

आज घर में चारों तरफ ठीक वैसी ही शांति थी, जैसे कोई तूफान होकर गुजरा हो उसके बाद होती है। तभी उस शांति को तोड़ते हुए सासू मां मधु जी की आवाज आई,
"अरे बहु, पति ने थप्पड़ मार दिया तो इसमें इतना क्या बुरा मानना। बेचारा दिन भर बाहर काम करके थक हार कर घर में आता है। तुम्हारे नाजो नखरे उठाता है। तुम्हारा पेट पालता है। बदले में परेशान होकर उसने हाथ उठा दिया तो ऐसा क्या हो गया जो बात का बतंगड़ बना रही है"
मधु जी जोर-जोर से अपनी बहू को डांटते हुए बोली। 
"अब भाभी आपका रोना धोना हो गया हो तो फटाफट से खाना लगा दो। यहाँ हम सबको भूख लग रही है। अगर खाना टाइम पर नहीं परोसा तो भैया दोबारा आपकी अच्छी खासी धुलाई कर देगा। फिर ना कहना कि हमने समझाया नहीं था। एक तो गलती आप करो और इल्जाम पति पर लगा दो"
ननद देविका बीच में ही बोल पड़ी।
लेकिन बहु दामिनी अपनी जगह से खड़ी नहीं हुई। उसके आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उसे रोता हुआ देखकर मधु जी बोली,
" बहू, इतनी कोमल काया वाली बनने की जरूरत नहीं है। फटाफट उठो और खाना तैयार करो। खाना मैं और देविका खुद ही परोस लेंगे" 
कहती हुई मधु जी रसोई के बाहर निकल गई। 
" अब उठ भी जाइए। क्या नाटक लगा रखा है। अब तो मम्मी ने मुझे भी आपके साथ काम पर लगा दिया। फटाफट खाना बनाओ, जो जल्दी से अपने और मम्मी के लिए खाना परोस कर ले जाऊं"
कहती हुई देविका भी बाहर आ गई।
और रसोई में रह गई सिर्फ दामिनी। अपने चिथड़े चिथड़े हो चुके स्वाभिमान को समेट कर जैसे तैसे वो खड़ी हुई। उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वो करें क्या। उसने कभी भी घर का माहौल ऐसा नहीं देखा था। मायके में मां भाई भाभी सब थे, बस पिता नहीं थे। पर फिर भी घर में काफी शांति रहती थी। भाई भाभी का पूरा सम्मान करते थे। पर पति का ये रूप भी होता है, ये तो उसने कभी सोचा भी नहीं था और ना ही अपनी रिश्तेदारी में कहीं देखा था।
एक बार तो सोचा कि मां को फोन कर सब कुछ बता दूं।‌ पर इस समय कैसे? भाभी को बेटी हुई है। मां तो उनकी देखभाल और घर की जिम्मेदारी में लगी हुई है। फिर सोचा भैया को फोन कर दूं। पर भैया के कंधों पर पूरे घर की जिम्मेदारी है, फिर वो मेरी अपनी जिम्मेदारी कैसे उठाएगा। कहीं भाभी नाराज हो गई तो? इसीलिए कहते पिता का होना जरूरी है। काश! आज पापा जिंदा होते तो मैं अपने मन की बात कह पाती।
मन ही मन सोचते हुए उसने अपने आंसुओं को पोछा और जाकर चूल्हे पर तवा चढ़ाया। और गरमा गरम रोटी सेक कर उन लोगों को खुद ही परोसा। क्योंकि मदद तो सिर्फ कहने के लिए है, असल में उसकी मदद के लिए कोई नहीं आता।
सास और ननद ने जब खाना खा लिया, तब तक उसका पति तरुण भी आ गया। मधु जी ने इशारे से तरुण के लिए भी खाना लगाने को कहा तो दामिनी तरुण के लिए खाना परोसकर ले आई। 
तरुण ने अभी एक निवाला खाया ही था कि अचानक थाली को उठाकर उसने जोर से दरवाजे की तरफ फेंका और जोर से चिल्लाया,
" ये खाना बनाया है तूने। एक महीना हो गया शादी को, लेकिन अभी तक खाना बनाना नहीं आया तुझे। नमक कितना कम डाला है सब्जी में। मुफ्त की रोटियां तोड़ने के लिए लाए हैं क्या तुझे। जो इन चीजों का भी ध्यान नहीं रहता तुझे"
तरुण बहुत ही बदतमीजी से दामिनी से बात कर रहा था। ये देखकर दामिनी और ज्यादा सहम गई। लेकिन मधु और देविका में से किसी ने कुछ नहीं कहा। 
" अब खड़ी खड़ी यहां मेरा मुंह क्या देख रही है। उठा ये सब और कुछ ढंग का बना कर ला मेरे लिए"
दामिनी का उसी समय जोर-जोर से रोना छूट गया। उसे रोता देखकर तरुण गुस्से में उसकी तरफ बढ़ा। लेकिन तभी मधु जी बीच में आ गई और तरुण को रोकने की कोशिश करने लगी। वही देविका को दामिनी को अंदर ले जाने के लिए कहा।
देविका दामिनी को उसके कमरे में लेकर चली गई। पीछे से मधु जी ने कहा,
" यह तू क्या कर रहा है? पागल हो गया है क्या? एक ही दिन में क्या अपने पति होने का सारा हक जता लेगा। इतना परेशान करेगा तो सबकुछ छोड़-छाड़ कर चली जाएगी"
" अरे कहीं नहीं जाने वाली मां। बिन बाप की बेटी है। भाई भाभी कोई जिम्मेदारी नहीं लेते। और मां कुछ कर नहीं सकती क्योंकि वो तो खुद बेटे बहु की मोहताज है। इसे तो यही झेलना है पूरी जिंदगी। और फिर आप ही तो कहती हो उसे दबा कर रखा कर। पहले भी तो उस पर हाथ उठा चुका हूं"
" वो तो ठीक है लेकिन भगवान के लिए घर का माहौल खराब मत कर। तुझे जो करना है अपने कमरे में कर। यहां सबके सामने उस पर हाथ उठाने की जरूरत नहीं है। तुझे कुछ और ही खाना है तो बाहर से मंगा ले या फिर बाहर जाकर किसी होटल रेस्टोरेंट में खा कर आजा। आज के लिए इतना ही काफी है। इतने हाथ पैर मत चला। कहीं उसके हाथ पैर टूट गए तो सारा घर का काम हमें करना पड़ जाएगा। और फिर उसकी सेवा कौन करेगा। चल जा यहां से"

आखिर मधु जी के डांटने पर तरुण घर के बाहर निकल गया। इधर देविका दामिनी को उसके कमरे में छोड़कर मधु जी के पास आ गई। तो मधु जी ने कहा,
" क्या हुआ? वो चुप हो गई?"
" नहीं, पर रो धोकर खुद ही चुप हो जाएगी। अब मुझसे और ड्रामा नहीं देखा जा रहा है। मैं अपने कमरे में आराम करने जा रही हूं"
कह कर देविका अपने कमरे में चली गई। इधर मधु जी ने घर का दरवाजा बंद कर उस फेंकी हुई थाली को उठाया और और बिखरा हुआ खाना समेट कर रसोई में रखने चली गई। फिर दामिनी के पास आकर बोली,
" बहू तरुण की बात को दिल पर मत लगा, उसका गुस्सा थोड़ा तेज है। अब तीन महीने की शादी में तुझे ये तो अच्छे से पता चल ही चुका है। फिर क्यों ऐसा काम करती है कि वो तुझ पर हाथ उठाए। उसकी पसंद नापसंद के अनुरूप खुद को ढाल। ना कि ऐसी रोनी सूरत लेकर उसके सामने आ। पत्नी को पति के अनुरूप ढल जाना चाहिए। देखा नहीं, तेरे रोते ही उसे कितना गुस्सा आ गया"
मधु जी की बात सुनकर दामिनी ने एक नज़र उनकी तरफ देखा, जैसे कह रही हो कि मैंने ऐसा कौन सा काम कर दिया जो मुझ पर हाथ उठाया जा रहा है। और बजाय अपने बेटे को समझाने के आप मुझे ही समझा रही है। लेकिन उसके मुंह से एक बोल तक ना फूटा। तभी मधु जी बोली,
" अब अपने आंसू पोंछो और खाना खा लो। और रसोई की सफाई कर देना। मैं जा रही हूं आराम करने"
मधु जी तो अपनी बात कह कर अपने कमरे में आराम करने चली गई। पीछे दामिनी सोचती रह गई कि आखिर कैसा परिवार है ये। सच कहा है किसी ने कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है। सब मुझे ही समझा रहे हैं पर ऐसा नहीं कि अपने बेटे को तो समझा ले। 
खैर जैसे तैसे दामिनी उठी। और रसोई की सफाई कर चुपचाप कमरे में आकर बैठ गई। इतना सब होने के बाद भूख तो कहां लगी थी उसे। तभी उसका मोबाइल बज उठा। देखा तो मां का फोन था। उसने फोन उठाया तो मां ने पूछा,
" दामिनी, बेटा कैसी है तू?"
" मैं ठीक हूं मां। आप बताओ"
" मैं भी ठीक हूं। पर तेरी आवाज अजीब सी लग रही है"
" कुछ नहीं मां, बस अभी काम करके आई हूं तो थक गई हूं"
" अच्छा सुन, कल कुआं पूजन है तो तेरा यहां होना जरूरी है। तेरी सास को तो मैंने शाम को ही फोन कर कह दिया था, पर तुझे नहीं बोल पाई थी। तू शायद रसोई में काम कर रही थी"
दामिनी मन ही मन सोचने लगी। उस समय कैसे बात कराती मेरी सास। उस समय तो उनका बेटा मुझ पर हाथ उठा रहा था। तभी मां बोली,
" ले तेरी भाभी से बात कर। वो तुझसे बात करना चाहती है। कब से पीछे पड़ी है कि दामिनी को फोन तो लगाओ। मुझे भी बात करनी है"
कहकर मां ने भाभी को फोन दे दिया।
" हेलो दामिनी जी, कल सुबह जल्दी ही आ जाना आप। सारी रस्में आपको ही तो करवानी है। आखिर आप बुआ जो ठहरी "
भाभी ने चहकते हुए कहा।
" जी भाभी"
दामिनी के संक्षिप्त से उत्तर से भाभी को शक सा हुआ। हमेशा अपनी भाभी से खुलकर बोलने वाली ननद अगर इतना सा जवाब दे तो शक तो होना लाजमी है। उन्होंने धीरे से पूछा,
" सब कुछ ठीक तो है ना। कोई परेशानी है तो बता"
" नहीं भाभी, सब कुछ ठीक है"
पर भाभी का मन नहीं माना। आखिर उन्होंने कहा, 
" दामिनी तुम बताना नहीं चाहती कोई बात नहीं। मैं जबर्दस्ती पूछूंगी भी नहीं। मैं सिर्फ एक बात कहना चाहूंगी। अगर तुम्हारे साथ कुछ भी गलत है जो संभाला नहीं जा सकता तो तुम वापस आ सकती हो। ये मत सोचना कि पापा नहीं है तो भाई भाभी जिम्मेदारी नहीं निभाएंगे। ये तुम्हारा घर है। तुम पूरे हक़ से वापस आ सकती हो"
भाभी के इतना कहते ही दामिनी का रोना छूट गया। पर भाभी ने उसके रोने का कारण नहीं पूछा। बस इतना सा ही कहा,
" दामिनी अब तुम दो परिवारों की इज्जत हो। अपने मायके और ससुराल का मान तुम्हें रखना है। गलत करके तो कभी मत आना। लेकिन अगर तुम्हारे साथ गलत हो रहा हो तो उसको बर्दाश्त करना भी मत। याद रखना अपने लिए खुद बोलना पड़ता है"
" जी भाभी"
दामिनी ने बस इतना ही कहा और फोन रख दिया। भाभी की इतने से शब्दों से उसे एक नई ऊर्जा मिली थी। एक नई हिम्मत मिली थी। उसे यह अच्छे से पता चल चुका था कि उसके मायके में आज भी उसके लिए जगह थी। जो उसकी हिम्मत को जगाने के लिए काफी थी। अब वो‌ तैयार थी तरुण का सामना करने के लिए। उसने अपने आंसू पोंछे और अपना सामान एक बैग में पैक कर लिया। और अपने लिए कैब बुक कर ली।
पर कैब से पहले तरुण घर पर आ गया। मधु जी ने ही जाकर दरवाजा खोला। मधु जी को सामने देखकर तरुण ने पूछा,

" मम्मी आपने दरवाजा क्यों खोला? आपकी बहू कहां मर गई? क्या वो दरवाजा खोल नहीं सकती थी"
"क्या हमेशा आग उगलता रहता है। जगी हुई थी मैं। मैंने आकर दरवाजा खोल दिया तो कुछ गलत हो गया क्या"
इतने में दामिनी अपने बैग के साथ बाहर निकाल कर आई। उसे बैग के साथ देखकर पहले तो दोनों हैरान से खड़े रह गए। फिर तरुण चिल्लाता हुआ बोला,
" यह क्या नया नाटक लगा रखा है तुमने? कहां जा रही हो बैग लेकर" 
" मैं अपने मायके जा रही हूं"
दामिनी ने कहा।
"किससे पूछ कर जा रही हो? इतनी हिम्मत कैसे हो गई तुम्हारी?"
"इसमें हिम्मत की क्या बात है? अपने लिए आवाज तो खुद ही उठानी पड़ती है"
"अच्छा! तुम्हारी इतनी हिम्मत हो गई कि तुम आवाज उठा रही हो। अचानक इतनी आवाज कैसे निकलने लगी मुंह में से? भाई भाभी रख लेंगे तुम्हें अपने पास। घूम फिर कर तो तुम्हें ससुराल ही आना पड़ेगा"
तरुण ने बड़ी कुटिलता के साथ कहा।
" इस गलतफहमी मत रहना। मेरे मायके का दरवाजा आज भी मेरे लिए खुला है"
इसी बीच मधु जी बोली,
" बहू पति की छोटी-छोटी बातों का इतना बतंगड़ नहीं बनाते। वो परेशान था इसलिए तुम पर हाथ उठा दिया। पर तुम तो रबड़ की तरह बात को खींचे जा रही हो"
" मम्मी जी मैं आपके बेटे का पंचिंग बैग तो नहीं हूं कि वो बाहर की सारी परेशानी मुझे पीट कर निकलेगा। सच ही कहा है किसी ने। औरत की दुश्मन औरत ही होती है। आप जो मुझे समझा रही है। कभी आपकी बेटी की शादी होगी तो क्या उसको भी यही सब समझाओगी"
"तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम मेरी मम्मी से इस तरह से बात करो"
कहता हुआ तरुण दामिनी की तरफ बढ़ा। लेकिन इससे पहले तरुण कुछ कर पाता, दामिनी ने जोरदार थप्पड़ तरुण के गाल पर दे मारा। अचानक पड़े इस थप्पड़ से सब हैरान रह गए। लेकिन दामिनी ने बोलना जारी रखा,
" कमजोर नहीं हूं मैं, याद रखना। अब मुझ पर हाथ उठाया ना तो घरेलू हिंसा के मामले में जेल में पटक दूंगी। बहुत बर्दाश्त कर लिया मैंने। बस आज वो हद भी खत्म हो गई। नहीं रहना मुझे तुम लोगों के साथ। ये रिश्ता मैं यहीं खत्म करके जा रही हूं"
कहकर दामिनी घर के बाहर निकल गई। इतने में कैब भी आ गई तो वो अपने मायके रवाना हो गई। लेकिन मायके पहुंचने के पहले ही दामिनी ने तरुण के खिलाफ घरेलू हिंसा का केस कर दिया। घरेलू हिंसा के कारण तरुण को जेल हुई और उसके आधार पर ही दामिनी को तलाक आसानी से मिल गया। 
आज दामिनी अपने पैरों पर खड़ी है। भैया भाभी ने अच्छा सा रिश्ता देखकर उसका दूसरा विवाह करवा दिया, जहां वो खुश है और सम्मान पूर्वक अपनी जिंदगी की रही है।।।

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4 Comments

Gunjan Kamal

19-Apr-2024 06:28 PM

शानदार

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Anjali korde

18-Apr-2024 02:08 PM

Awesome

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Mohammed urooj khan

18-Apr-2024 12:00 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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